भोजन और वास्तु सिद्धांत
भोजन सर्वदा पूर्व अथवा उत्तरकी ओर मुख करके करना चाहिये।
"प्राड्मुखोदड्मुखो वापि"
( विष्णु पुराण ३।११।७८)
"प्राड्मुखऽन्नानि भुञ्ञी"
( वसिष्ठ स्मृति १२।१५)
दक्षिण अथवा पश्चिमकी ओर मुख करके भोजन नहीं करना चाहिये।
भुञ्ञीत नैवेह च दक्षिणामुखो न च प्रतीच्यामभिभोजनीयम् ॥
( वामनपुराण १४।५१)
दक्षिणकी ओर मुख करके भोजन करनेसे उस भोजनमें राक्षसी प्रभाव आ जाता हैं।
' तद् वै रक्षांसि भुञ्ञते '
( पाराशरस्मृति १।५९)
अप्रक्षालितपादस्तु यो भुड्न्के दक्षिणामुखः ।
यो वेष्टितशिरा भुड्न्क्ते प्रेता भुञ्ञन्ति नित्यशः ॥
( स्कन्दपुराण, प्रभास० २१६ । ४१)
जो बिना पैर धोये भोजन करता हैं, जो दक्षिणकी ओर मुँख करके खाता हैं अथवा जो सिरमें वस्त्र लपेट कर (सिर ढककर) खाता हैं, उसके द्वारा ग्रहण किये गये अन्न को सदा प्रेत ही खाते हैं ।
यद् वेष्टितशिरा भुड्न्क्ते यद् भुडन्क्ते दक्षिणामुखः ।
सोपानत्कश्च यद् भुड्न्क्ते सर्वं विद्यात् तदासुरम् ॥
( महाभारत, अनु० ९०।१९)
जो सिरमें वस्त्र लपेटकर भोजन करता हैं, जो दक्षिणकी ओर मुख करके भोजन करता है तथा जो चप्पल-जूते पहने भोजन करता हैं, उसके द्वारा ग्रहण किये गये भोजन को आसुर समझना चाहिये।
प्राच्यां नरो लभेदायुर्याम्यां प्रेतत्वमश्रुते ।
वारुणे च भवेद्रोगी आयुर्वित्तं तथोत्तरे ॥
( पद्मपुराण, सृष्टि० ५१ । १२८)
- पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति की आयु बढ़ती हैं।
- दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करने से प्रेत तत्व की प्राप्ति होती हैं।
- पश्चिम की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति रोगी होता हैं।
- उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति की आयु तथा धन की प्राप्ति एवं वृद्धि होती हैं ।
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