आध्यात्मिक आस्था का महापर्व
हिन्दु धर्म में महाशिवरात्रि को हर्ष और उल्हास का महा पर्व माना जाता हैं।
शिव का व्यक्तित्व हर साधारण व्यक्ति की भावनाओं का प्रतीक है। सदियों से भारत में महाशिवरात्रि उत्सव को पूर्ण आस्था और आध्यात्मिकता के साथ सृष्टि के रचनाकर देव महादेव को आभर प्रकट करते हुए उनकी विशेष कृपा प्राप्त करने का विधान हैं। दार्शनिक चिंताधारा से देखे तो मानव जीवन के कल्याण लिये एवं मानवता को जोड़ ने हेतु।
हजारो वर्षो से भारतीय जीवन शैलि स्वाभाविक-अस्वाभाविक रूप से प्रकृति से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध रखती हैं। भारतीय संस्कृति में शिव को सर्वव्यापी पूर्ण ब्रह्म के रूप में समावेष किया गया हैं।
भारतीय संस्कृति मे शिव जी को पिता और उनकी पत्नि पार्वती जी को मां मान कर उनकी आराधना परिवार, समाज एवं विश्व के कल्याण हेतु की जाती हैं। प्रकृति की भेट बेल पत्र द्वारा शिवलिंग पर अभिषेक कर शिव के समीप अपने कार्य या कामना पूर्ति हेतु प्राथना की जाति हैं। जिस्से व्यक्ति अपने कल्याण कर अपनी हिंसक प्रवृति, क्रोध, अहंकार आदि बूरे कर्मो पर अंकुश लगाने में समर्थ हो सकें।
हिंदू संस्कृति में शिव को प्रसन्न करने हेतु शिवरात्रि पर्व पर शिवलिंग की विशेष पूजा-अर्चना की परम्परा हैं। इसि लिये शिवरात्रि पर देश-विदेश के सभी शिव मंदिरों में विभिन्न प्रकार से धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावना के साथ पूजा, अर्चना, व्रत एव उपासना की जाती हैं। क्योकि शिव स्वयं विष पान करके सृष्टि को अमृत पान कराते हैं। इसी प्रकार शिवरात्रि का महापर्व संसार से बूराईयों को मिटाकर विश्व को सुख, स्मृद्धि, प्रेम एवं शांति फेलाने का हैं।
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