बोलते हैं हस्ताक्षर। भाग -२
किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत एवं सामाजिक व्यवहार को जानने का सरल तरीका हैं उसके हस्ताक्षर कि लिखावट।
यहा हम आपकी सुविधा हेतु इसे श्रेणीयों में विभाजीत कर रहे हैं।
- बहिर्मुखी व्यक्तित्व,
- अन्तर्मुखी व्यक्तित्व और
- मघ्यम ( यानी ना ज्यादा बहिर्मुखी ना अन्तर्मुखी)
बहिर्मुखी व्यक्तित्व
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर को थोडा भार देकर लिखता है, हस्ताक्षर की छाप एक पेपर से दूसरे पेपर पर जाती हों, हस्ताक्षर को बडे एवं गोलाई में लिखता हों, जिसकी लिखावट दायीं बाजुसे थोडी झुकती हुई हों,
एसे व्यक्ति समाजिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के साथ मिलझुल कर कार्य करने मे विश्वार रखते हैं। समाज सेवा के लिये अपना सब कुछ नौछावर करने हेतु तत्पर रेहते हैं, एवं अपने किये गये कार्यो हेतु गर्व अनुभव करते हैं। कई लोग में समाज से कुछ पाने की प्रबल इच्छा देखी जाती हैं।
अन्तर्मुखी व्यक्तित्व
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर को हलके हाथ से लिखता है, हस्ताक्षर की कोई छाप एक पेपर से दूसरे पेपर पर नहीं जाती हों, हस्ताक्षर छोटे एवं अस्पस्ट लिखते हों, जिसकी लिखावट बायीं बाजुसे थोडी झुकती हुई हों,
एसे व्यक्ति का समाजिक जीवन बचपन में उपेक्षा का शिकार होने के कारण हिन भावना, उदासी जेसे कारण अन्तर्मुखी बनजाते हैं। एसे व्यक्ति को समाज से ज्यदा लगाव नहीं होता अपनीही धून में रमे रहने वाले होते हैं। उनका व्यवहार दूसरो के प्रति अच्छानहीं रेहता लेकिन खुद दूसरों से अच्छे व्यवहार की सदैव आश लागये रहते हैं। अपने अंदरकी बात किसी को सरलता से नहीं बतातें।
मघ्यम व्यक्तित्व (ना बहिर्मुखी ना अन्तर्मुखी)
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर को ना हलके हाथ से नाहीं ज्यदा जोर देकर लिखता है, हस्ताक्षर की लिखावट सीघी हो, हस्ताक्षर छोटे अथवा मधयम होकर एकदम स्पस्ट लिखते हों,
एसे व्यक्ति का समाजिक जीवन सामन्य होता हैं। यह लोग नातो दिखाने मे विश्वास रखते हैं नाहीं छुपाने में यह लोग हर समय असामन्य परिस्थिती में होने पर भी सामान्य बने रेहने का प्रयाश करते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें